यह दास्तां है दो मुख्यमंत्रियों की। एक जनजाति का नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ललदुहोमा। इसने दोनों राष्ट्रीय पार्टियों (भाजपा और कांग्रेस) को पराजित किया। अलग किस्सा है उस कांग्रेसी मुख्यमंत्री का जिसे डंके की चोट पर सारा छत्तीसगढ़ मीडिया जिता रहा था। सारे एग्जिट पोल भी। नाम है भूपेश बघेल।
तो जानिए पहले की। कैसे चर्च और रिलिजन का जोर चला था पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम में जहां जोरम पीपुल्स पार्टी के लालदुहोमा की शानदार जीत हुई। याद कीजिये मिजोरम में मतगणना रविवार (3 दिसंबर) को तय था। ईसाइयों के आग्रह पर तारीख सोमवार, 4 दिसंबर कर दी गई। हालांकि अन्य राज्यों में यह 3 दिसंबर को ही घोषित हुए। इतना दबाव रहा ईसाइयों का भारत के निर्वाचन आयोग पर।
इसी संदर्भ में गौरतलब है पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और यूरेशियन राजनेता राहुल गांधी की मिजोरम में अभियान यात्रा। उन्होंने तब ऐलान किया था कि यह मतदान कांग्रेस पार्टी के लिए “करो या मरो” जैसा है। अतः हर कांग्रेसी को मुस्तैदी से जुटना पड़ेगा। राहुल गांधी के संबोधन से सारे मिजो ईसाई एकजुट हो गए कि सोनिया-कांग्रेस को जिताना है हर कीमत पर। मगर परिणाम क्या आया ? सत्ता पर वर्षों रही कांग्रेस को इस बार केवल एक मात्र सीट मिली। भाजपा दो पर जीत कर तनिक बेहतर बनी। विधानसभा में कुल चालीस सदस्य हैं। माहौल ऐसा जबरदस्त रहा कि मुख्यमंत्री जोरमंथगा जो 33 वर्षों से मिजो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष रहे थे, स्वयं हार गए। उनके उपमुख्यमंत्री तवालूंइया भी हारे।
मिजोरम की जनता को 57 वर्ष बाद भी याद है कि 5 मार्च 1966 की दुर्घटना। तब नवनियुक्त कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय वायुसेना से राजधानी आईजवाल में विद्रोहियों पर बम वर्षा कराई थी। इन बमवर्षक जहाजों के चालक थे राजेश पायलट तथा सुरेश कलमाड़ी, दोनों बाद में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता रहे। पूर्वी कमांड के जनरल सैम मानेकश भी इस आक्रमण में शरीक रहे। यूं भी डॉ. राममनोहर लोहिया द्वारा नेहरू-इंदिरा सरकार की तीव्र भर्त्सना होती रही कि उन्होंने पूर्वोत्तर को अजायबघर जैसा बनाया है। मणिपुर विधानसभा भंग करने पर लोहिया इंफाल में जेल भी गए थे। मिजोरम में भी लोकतंत्र की दशा पड़ोसी मणिपुर जैसी ही रही।
अब चर्चा हो नवीन मुख्यमंत्री लालदुहोमा की। यह 73-वर्षीय राजनेता प्रधानमंत्री के सुरक्षा स्टाफ में थे। भारतीय पुलिस सेवा (गोवा काडर के) अफसर थे। खुद इंदिरा गांधी ने उन्हें लंदन भेजा था कि निर्वासित विद्रोही नेता लालडेंगा से शांति वार्ता करें। युवा अफसर और आज जोरम पीपुल्स मूवमेंट के मुख्यमंत्री लालदुहोमा के प्रयासों के कारण मिजोरम में तब शांति कायम हो पाई। नतीजन स्वयं राजीव गांधी ने उन्हें कांग्रेस से टिकट देकर 1984 में सांसद चुनवाया था।
इस बार के चुनाव प्रचार में लालदुहोमा का जोरदार प्रभाव रहा। उनका मकसद था आदिवासी पर्वतीय सीमांत इलाकों में समूची शराबबंदी। बड़ा कारगर भी रहा। महिलाओं ने बड़ी संख्या में उनकी पार्टी को वोट दिया। नतीजा बहुमत में दिखा। लालदुहोमा की काबिले गौर उपलब्धि यह रही कि उन्होंने सरचिप क्षेत्र से लालथनहवला को शिकस्त दी। वे पांच बार कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे थे।
लालथनहवला के छः काबीना मंत्री भी धूल धूसरित हो गए। लालदुहोमा के बहुमत का खास कारण था कि उन्होंने बिल्कुल नए चेहरों को पेश किया। उनमें थे फुटबॉल खिलाड़ी जेर्जो लालफेरबलुआ और रिटायर्ड फौजी कर्नल क्लेमेंट ललमिंगथंगवा थे। दोनों विजयी रहे। सर्वाधिक दिलचस्प रहा कि 40 सालों में पहली बार एक से अधिक महिला जीती हैं। उनमें उल्लेखनीय है कि चार महिलाएं थीं।
नए मुख्यमंत्री एक किसान का बेटा है। वे मिजोरम के प्रथम मुख्यमंत्री चो छुंगा के सहायक थे। तब रात्रि पाठशाला में पढ़कर बीए किया। गुवाहाटी विश्वविद्यालय से। फिर भारतीय पुलिस सेवा में चयनित हुए। सांसद रहे। आज उनकी नवगठित पार्टी ने भारत की सबसे पुरानी पार्टी (कांग्रेस) को अपदस्थ कर दिया।
अब जिक्र हो दूसरे राज्य का जहां सोनिया-कांग्रेस की सरकार को मोदी की भाजपा ने बेदखल कर दिया है। भूपेश, वल्द नंदकिशोर बघेल, अब वजीरे आला से केवल बापुरा रह गये हैं। बापुरा के पर्याय है : बेचारा, अदना, निरीह नगण्य। छत्तीसगढ़ के इस सोनिया—कांग्रेसी मुख्यमंत्री ने सोचा होगा कि हिन्दु समाज को अगड़ा—पिछड़ा वोटरों में काट दो तो सत्ता फिर से हासिल हो जायेगी। यूं भी उनके पिताश्री एक बार ब्राह्मणों को गाली देने के अपराध में जेल काट आयें हैं।जातिवादी नौटंकी के अलावा भूपेश बघेल ने कांग्रेस चुनाव घोषणा पत्र में खूब लुभाने वाले वादे किये, जिनकी तारीफ राहुल गांधी ने की थी। पर नरेन्द्र मोदी की भांति उन्होंने कोई गारंटी नहीं दी थी। इसीलिये वोटर समझ गये कि यह सब रेवडियां केवल रेवड़ हैं अर्थात भेड़ का गल्ला। मसलन हर महिला को मासिक पन्द्रह हजार रूपये। बजट में कहा से राशि आती? मगर वादा कर दिया।
कांग्रेस वाले भाई—बहन और मां ने भी छत्तीसगढ़ में ऐड़ी—चोटी का जोर लगा दिया। जरूरी था। आखिर कांग्रेस का यह खनिज—संपदा बहुल क्षेत्र एटीएम है। यहां की कोयले की खान को लूट होती रही है। धान की मुनाफागिरी सो अलग। शराब की ठेकेदारी भी आवक का जरिया था। मोदी ने भंड़ा फोड़ कर बघेल सरकार के राजकोशीय डकैती को उजागर कर दिया। प्रवर्तन निदेशालय ने बाकी पोल खोल दी। महादेव एप्स में तो घोटाला अनंत, असीम था। विदेशी सूत्र भी रहे। भूपेश बघेल के करीबी लोग शरीक हैं, जांच चल रही है।
पार्टी को विद्रूप और विकृत कराने का श्रेय जाता है कांग्रेस के खास प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल को। यह केरल का कांग्रेसी अपने गृहराज्य में मार्क्सवादी सरकार द्वारा महिला शोषण के अपराध का दोषी पाया गया। जमानत पर है।
छत्तीसगढ़ एक जनजाति बहुल राज्य है। यहां आरक्षित कुल विधानसभाई सीटें 29 हैं। कांग्रेस सभी जीतती रही। इस बार केवल 11 ही जीत पायी। बाकी भाजपा ने जीती। इनकी जनविरोधी हरकतों का ही परिणाम था कि कांग्रेस के 13 में नौ मंत्री चुनाव हार गये। पराजित प्रत्याशियों में उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव भी हैं। वे इस बार मुख्यमंत्री पद के दावेदार होते। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू भी होते।
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K Vikram Rao
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